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गीता में छिपा है जीवन जीने का सार | गीता सार – श्री कृष्ण वाणी | Chota Sa Safar – Deepanshu Gahlaut

गीता में छिपा है जीवन जीने का सार | गीता सार – श्री कृष्ण वाणी | Chota Sa Safar

जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूँ।
जब जब अधर्म बढ़ता है, तब तब मैं आता हूँ।
सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मैं आता हूँ।
दुष्टों के विनाश के लिए मैं आता हूँ।
धर्म की स्थापना के लिए मैं आता हूँ और युग युग में जन्म लेता हूँ।
मैं संसार के प्रत्येक कण कण में हूँ।
क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो?
किससे तुम व्यर्थ डरते हो?
कौन तुम्हें मार सकता है?


आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है।
जो हुआ, अच्छा हुआ,
जो हो रहा है, अच्छा ही हो रहा है। जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा।
तुम भूत का पश्चताप न करो और भविष्य की चिंता न करो।
वर्तमान चल रहा है।
तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो?
तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया?
तुमने क्या पैदा किया? जो नष्ट हो गया?
न तुम कुछ लेकर आए,
जो लिया यहीं से लिया, जो दिया यहीं पर दिया,
जो लिया इसी से लिया, जो दिया इसी को दिया।
खाली हाथ आए, खाली हाथ चले।
जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था,
परसों किसी और का होगा।


तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो।
बस, यही प्रसन्नता तुम्हारे दुख का कारण है।
परिवर्तन संसार का नियम है।
जिसे तुम मृत्यु समझते हो,वही तो जीवन है।
1 क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो।
दूसरे ही क्षण तुम दरिद्र हो जाते हो।
तेरा मेरा छोटा बड़ा, अपना पराया मन से मिटा दो
फिर सब तुम्हारा है तुम सबके हो।
न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो।
यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है
और इसी में मिल जाएगा।


परन्तु आत्मा स्थिर है। फिर तुम क्या हो?
तुम अपने आप को, भगवान को अर्पित करो।
यही सबसे उत्तम सहारा है
और जो इसके सहारे को जानता है,
वह भय चिंता शोक से सर्वदा मुक्त है।
जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान को अर्पण करता चल।
ऐसा करने से सदा जीवन मुक्त का आनंद अनुभव करेगा।
क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि विचलित होती है।
और जब बुद्धि का विचलन होता है,
तो तर्क करने की क्षमता क्षीण हो जाती है।
और जब तर्क करने की क्षमता क्षीण हो जाती है
तो मनुष्य पतन की ओर अग्रसर हो जाता है
इसलिए क्रोध से बचना चाहिए।
मन बहुत चंचल होता है


और मन पर नियंत्रण करना बहुत आवश्यक है।
जो मनुष्य मन पर नियंत्रण नहीं कर पाते,
ऐसे मनुष्य का मन उसके शत्रु की भांति कार्य करता है
और धीरे धीरे व्यक्ति गलत मार्ग की ओर अग्रसर हो जाता है।
लगातार प्रयत्न करने से अशांत मन को वश में किया जा सकता है
मन को वश मे करना सरल भी है और दुष्कर भी।
यदि मनुष्य धीर मति और दृढ़ निश्चय वाला है
तो वह सरलता से अपने मन को वश में कर सकता है
और यदि मनुष्य की मति धीर नहीं, तो वो दृढ़ निश्चय नहीं होगा।
ऐसा मनुष्य जन्म जन्मांतर तक भटकता रहता है।


परमात्मा में विश्वास से, धर्म में विश्वास से,
सत्य में विश्वास से मनुष्य दृढ निश्चय हो सकता है।
कोई भी मनुष्य अपने कर्मों से भाग नहीं सकता।
कर्मों का फल अवश्य भुगतना पड़ता है।
इसीलिए सदैव, शुभ और अच्छे कर्म करो।
सही कर्म वह नहीं जिसका परिणाम सही हो।
अपितु सही कर्म वह है, जिसका उद्देश्य कभी गलत न हो।
न सुख स्थाई है, न दुःख स्थाई है।
यह संसार परिवर्तनशील है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है।
यहाँ कोई भी वस्तु स्थाई नहीं होती।


हमारे शरीर की आत्मा भी स्थाई नहीं है।
फिर सुख और दुख स्थायी कैसे हो सकते हैं?
मनुष्य को सुख और दुख दोनों भोगने पड़ते हैं।
सुख और दुख 1 ही चक्र के 2 अर्ध भागों के समान है
और यह चक्र चलता ही रहता है, चलता ही रहता है।
मनुष्य फल की इच्छा त्याग कर कर्म को अपना धर्म
और कर्तव्य समझ कर करे तो यह निष्काम कर्म है।
फल तो अवश्य मिलेगा,
परन्तु मनुष्य इस फल को विधान की इच्छा समझ कर ही स्वीकार करें।
ज्ञानी पुरुष इसी योग को अपनाकर ही कर्म योगी बन जाते हैं।
जो मनुष्य फल की इच्छा को ध्यान में रखकर कर्म करते हैं,
उनका मन कर्म और कर्तव्य में विचलित हो जाता है।
इसलिए कर्म, करो पर फल की इच्छा मत करो।
न किसी के मरने का शोक करो,


न किसी के साथ, नाता टूटने का दुख मनाओ
जिसे तू समझता है कि तेरी मृत्यु के बाद वे शोक करेंगे,
सारा जीवन रोते रहेंगे, वह भी असत्य है।
थोड़े ही दिनों बाद उन रोने वालों को तू हंसता खेलता देखेगा।
मित्र 4 दिन रोता है, भाई 10 दिन रोता है,
पत्नी इससे अधिक होती है, माता सबसे अधिक रोती है,
परन्तु सबके आंसू धीरे धीरे सूख जाते हैं
और उन आँखों में फिर नए नए सपनों की रोशनी चमकने लगती है।
संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाली कोई वस्तु नहीं है और न ही कोई तत्व है।
ज्ञान ही सर्वोत्तम है, जो अज्ञानी है, जिनमें श्रद्धा भाव नहीं है,


जो बात बात पर शंका करते हैं, वह तो नष्ट हो ही जाते हैं।
उन्हें न तो इस लोक में और न ही परलोक में सुख मिलता है।
तुम्हारे भीतर जो मुनि बैठा है उसे जगाओ
जब भी मन परेशान हो, जब भी कोई राह नजर न आ रही हो,
जब भी सलाह की जरुरत हो, जब सत्य जानना हो,
जब जीवन को जानना हो, अपने अस्तित्व को जानना हो,


तो गीता पढ़ लिया करो। गीता पथ प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ है
गीता से बेहतर कुछ भी नहीं, बार बार गीता पढ़िए
हर बार जीवन को देखने का 1 नया दृष्टिकोण मिलेगा,
हर बार कुछ नया सीखो जीवन जीने की कला है गीता।
पथ प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ है गीता।

Speaker: Diksha Rajput
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