यह बच्चा किसका है – एक कहानी ओशो की किताब से | Chota Sa Safar

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दूसरों पर काबू पाना ताकत है,पर खुद पर काबू पाना असली ताकत है,

एक फकीर था, एक युवा फकीर, जापान के एक गांव में, उसकी बड़ी कीर्ति थी, बड़ी महिमा थी, सारा गांव उसे पूजता और आदर करता था, उसके सम्मान में सारे गांव में गीत गाए जाते, लेकिन एक दिन सब बात बदल गई, गांव की एक अविवाहित युवती ने एक बच्चे को जन्म दिया, जब उसके माता-पिता ने उसके पिता का नाम पूछा तो उस युवती ने उसी युवा सन्यासी का नाम ले लिया, बस फिर कितनी देर लगती है, प्रशंसको को शत्रु बनने में, पैर छूने वाले लोग एक क्षण में सर काटने को तैयार थे, गांव के सभी लोग उस फकीर के झोपड़े पर टूट पड़े, सबने गुस्से में आकर फकीर के झोपड़े में आग लगा दी और जाकर उस एक के बच्चे को उस फकीर के ऊपर पटक दिया उस फकीर ने पूछा, आखिर बात क्या है? तो उन लोगों ने कहा, यह भी हमसे पूछते हो कि बात क्या है? यह बच्चा तुम्हारा है, यह भी हमें बताना पड़ेगा कि बात क्या है? अपने जलते मकान को देखो, अपने भीतर के दिल को देखो, इस बच्चे को देखो और इस लड़की को देखो, हमसे पूछने की जरूरत ही नहीं, यह बच्चा तुम्हारा है, वह फकीर बोला अच्छा, यह बच्चा मेरा है, इतने में वो बच्चा रोने लगा तो उस बच्चे को चुप कराने के लिए फकीर गीत गाने लगा, सब गांव वाले उसका मकान जलाकर वापस लौट आए, फिर वह रोज के समय दोपहर को भीख मांगने निकला, लेकिन आज उस गांव में उसे कौन भीख देगा, आज जिस द्वार पर भी वह खड़ा था, वह द्वार बंद हो गया, आज उसके पीछे पीछे बच्चों की टोली और लोगों की भीड़ चलने लगी. मजाक करने लगी, पत्थर फेंकने लगी, वह उस घर के सामने पहुंचा, जिस घर में वह लड़की थी, जिस लड़की का वह बच्चा था, उसने वहां आवाज दी तो उसने कहा कि मेरे लिए भीख मिले ना मिले लेकिन इस बच्चे के लिए दूध तो मिल सकता है, मेरा कसूर हो सकता है, लेकिन इस बेचारे बच्चे का क्या कसूर है, वह बच्चा रो रहा था, और भीड़ वहीं खड़ी थी, अब उस लड़की की शहनशीलता के बाहर हो गई बात, वह अपने पिता के पैरों पर गिर पड़ी और रोने लगी और उसने कहा कि मुझे माफ कर दो, मैंने साधु का नाम झूठे ही ले लिया था, बच्चे के असली पिता को बचाने के लिए मैंने साधु का नाम लिया था, साधु से मेरा कोई परिचय नहीं, यह सुनकर लड़की का पिता तो घबरा गया, यह तो बहुत बड़ी दुर्घटना हो गई, वह नीचे भागा और फकीर के पैरों में गिर पड़ा और उससे बच्चा मांगने लगा, इस पर उस फकीर ने पूछा, आखिर अब क्या बात हो गई, तो लड़की के पिता ने कहा, हमें माफ करें, हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई है, यह बच्चा आपका नहीं है, इस पर उस फकीर ने कहा, हां, मैं जानता हूं, यह बच्चा मेरा नहीं है, तो उस पर लड़की के पिता और गांव वाले ने कहा, तुम पागल हो गए हो क्या, तुमने सुबह ही क्यों नहीं इंकार किया? इस पर उस फकीर ने कहा, इससे क्या फर्क पड़ता था? बच्चा किसी ना किसी का तो होगा ही और तुम एक झोपड़ा पहले ही जला चुके थे, अब तुम दूसरा जलाते और एक आदमी को बदनाम करने का मजा तुम ले चुके थे, तुम एक और आदमी को बदनाम करने का मजा लेते. इस पर लोगों ने कहा, तुम्हें इतनी भी समझ नहीं है, तुम्हारी इतनी निंदा हुई, इतना अपमान हुआ, इतना अनादर हुआ और तुम कुछ नहीं बोले, इस पर उस फकीर ने कहा, अगर तुम्हारे आदर की मुझे कोई फिक्र होती तो तुम्हारे अनादर की भी मुझे कोई फिक्र होती, मुझे तो जैसा ठीक लगता है, मैं वैसे जीता हूं और तुम्हें जैसा ठीक लगता है, तुम करते हो, इस पर लोगों ने कहा, भले आदमी, तू इतना तो सोचता, कम से कम तू भला आदमी है और बुरा हो जाएगा, तो उसने हंसते हुए कहा, ना मैं बुरा हूं. ना मैं भला हूं, तो मैं वही हूं जो मैं हूं, अब मैंने यह भले बुरे की फिक्र छोड़ दी है, अब मैंने यह फिक्र छोड़ दी है कि मैं अच्छा हो जाऊं, क्योंकि मैंने अच्छा होने की जितनी कोशिश की, मैंने पाया कि मैं बुरा होता चला गया, मैंने बुराई से बचने की जितनी कोशिश की, मैंने पाया कि भलाई से मैं उतना ही दूर होता चला गया, मैंने अब यह खयाल छोड़ ही दिया, अब मैं बिल्कुल… तथष्ट हो चुका हूं और जिस दिन मैं तथष्ट हो गया, उस दिन मैंने पाया कि ना बुराई मेरे भीतर रह गई, ना भलाई और एक नई चीज का जन्म हुआ है, जो सभी भलाइयों से ज्यादा भली है और जिसके पास बुराई की छाया भी नहीं है.

Speaker: Diksha Rajput
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